Friday 30 December 2011

शुक्रगुजार हूँ उसका ..


साल बीतने को है, बाकी सभी काम तो चलते रहे, इश्वर को शुक्रिया करने के लिए मन से कुछ शब्द निकले , वही हैं यह ..

शुक्रगुजार हूँ उसका
कि जिंदा हूँ
खुश हूँ इस बहार मेँ
मौसम की तपन से
सेँकता हूँ रूह अपनी ..

पीछे छूटे ऊबड़ खाबड़
रास्तोँ की धूल
आखोँ से निकालने की
नाकाम कोशिश करता
ठहरा हूँ दोराहे पर ..

कोई शिकवा नहीँ
उससे
इक इल्तिज़ा बस है
वजह बनू मै
किसी मुस्कान की ..

Tuesday 27 December 2011

अपर्णा दीदी व मनोज जीजाजी को वैवाहिक वर्षगाँठ पर शुभ प्रभात के सभी बहनों भाइयों की हार्दिक शुभकामनायें ..


दिसम्बर २७, २०११

अपर्णा दीदी व मनोज जीजाजी को वैवाहिक वर्षगाँठ पर शुभ प्रभात के सभी बहनों भाइयों की हार्दिक शुभकामनायें ..

आपके दिन यूँ ही हर रोज़ मुस्कुराएं
जीवन का हर नया प्रभात नए सपने लेकर आए
आशीष बरसाए स्वयं परमात्मा
फूलों की तरह मन प्राण खिल खिल जाए!!!

कविता खिलती रहे अपर्णा के मन आँगन में
अपर्णा माँ पार्वती का ही तो है पर्याय
वैसे ही विष्णु सहस्त्रनाम में से एक नाम है मनोज
देव-देवी की जोड़ी सदा रचती रहे खुशियों का नूतन अध्याय!!!

मन प्राण में सुख सम्पदा का बसेरा हो
जीवन नित नए प्रतिमान गढ़े
साथ की अनुपम परिभाषा हो
स्वयं प्रेम अपना पाठ आपकी छवि में पढ़े!!!

इस शुभ दिवस पर
अनंत बधाई हो
अपर्णा-मनोज के आगन में
सुनहरी धूप उतर आई हो...

उसके पास ही कहीं दूब सी
कोई कविता खिले
और मनोज के मानस की कोई बात
अपर्णा शब्दों में कहती मिले!!!

हम यह सब देख
भाव विभोर हो लेंगे
प्रणाम निवेदित है दोनों के चरणों में
इस शुभ दिन की सुन्दर स्मृतियाँ हम मन आँगन में बो लेंगे!!!

यूँ सहस्त्रों वर्षों तक
उत्सव मनाएंगे
वर्षगाँठ की शुभकामनाओं में
अनंत दीप जालायेंगे!!!


'अनु'

&

समस्त शुभ प्रभात परिवार

Monday 26 December 2011

जन्मदिन के शुभ अवसर पर इस सुन्दर बेला में!


धन्य धन्य भये हम अंजु अनु
मन मोहती, बहती रहे
यूँ ही अविरल ये स्नेह धारा ..
बस यही संदेस हमारा ..


दिसम्बर २७, २०११

'अनु'

जीवन के इस पथ पर
मिला है साथ तुम्हारा,
खिले कई नवांकुर,
सार्थक जीवन धारा.....

रहें कहीं भी, प्रेम
मगर है अपने मन में
बांध लिया है मुझे
अनोखे इस बंधन में,

स्नेह-वर्षा का मोल चुकाना
नहीं है संभव बहना,
पग पग मिले आशीष
सदा प्रसन्नचित रहना,

हृदय डोर के कई सिरों
पर हमने बांधी,
रिश्तों की सौगात
हमारी सबकी सांझी,

आज बन गया खास
ये दिन हर वर्ष है आया,
साथ किन्तु इस बार
अनोखी खुशियाँ लाया,

जीवन पथ पर मिला मुझे
परिवार है प्यारा,
इनको पाकर धन्य हो
गया जीवन सारा............


- Anju Sharma





२६ दिसम्बर २०११

अंजू बहन को जन्म दिवस पर अनुपमा के सुन्दर शब्दों से रची एक पावन रचना भेंट स्वरुप:




जन्मदिन के शुभ अवसर पर
इस सुन्दर बेला में!
जीवन के सारे रंग खिल जाएँ
इस अनोखी बेला में!!

खुशियों से भर जाए आँचल
प्रेम वर्षा से भींग जाए मन आँगन
व्यस्तताओं के बीच
खिल आये दो पलों का अवकाश
इस पावन बेला में!

जन्मदिन के शुभ अवसर पर
इस सुन्दर बेला में!
जीवन के सारे रंग खिल जाएँ
इस अनोखी बेला में!!

शुभकामनाओं और आशीषों का भण्डार
बहन तुम्हें क्या दूं उपहार
सारी खुशियाँ... तेज सकल
रौशन कर दे तेरा मुखचन्द्र
इस सुन्दर बेला में

जन्मदिन के शुभ अवसर पर
इस सुन्दर बेला में!
जीवन के सारे रंग खिल जाएँ
इस अनोखी बेला में!!

कलम पर रहे सदा
माँ शारदे की कृपा
अक्षर अक्षर शब्द शब्द
करते रहे अमृत वर्षा
इस अनुपम बेला में!

जन्मदिन के शुभ अवसर पर
इस सुन्दर बेला में!
जीवन के सारे रंग खिल जाएँ
इस अनोखी बेला में!!




- अनुपमा

शुभकामनायें
शेखर

Friday 16 December 2011

स्वप्न और विश्वास ..


आज 'मेरे सपने' पढ़ी अनुपमा जी की, रचना एक वर्ष पूर्व की है, पर लगा जैसे हमारे भावों को नवीन शब्द मिल गए, अपने आप को रोक नहीं पाए, इसे यहाँ शेयर करने से .. दिसम्बर २१, २०११

http://www.anusheel.in/2010/12/blog-post_15.html?showComment=1324485290748#c3974357551902609830
प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at १५ दिसम्बर २०१०


मेरे सपने!

अथाह सागर को
एक नन्ही सी
नाव के सहारे
नाप आये...
मेरे सपने!

विस्तार कितना है
जीवन का
सब सत्य
भांप आये...
मेरे सपने!

विशाल अम्बर पर
विचरण कर
वहाँ अपनी शब्दावली
छाप आये...
मेरे सपने!

सारी घृणा
सकल कृत्रिमता को
इकठ्ठा कर
ताप आये...
मेरे सपने!

आशान्वित हो
दुर्गम राहों को
बड़ी सुगमता से
नाप आये...
मेरे सपने!







Anju Sharma
दिसम्बर १६, २०११

एक उनींदी सुबह
जब समेटती है कई
अधूरे स्वप्नों को,
अधखुली आँखों से
विदा पाते हैं,
भोर के धुंधले तारे,

कुछ आशाओं को पोंछकर
चमकाते हुए,
अक्सर दिखती है,
खिड़की के बाहर,
फटी धुंध की चादर,

उससे तिरता
एक नन्हा मेघदूत,
जिसके परों पर चलके
आता है
चमकीली धूप का
एक नन्हा सा टुकड़ा

भर जाती है एक बक्से में
सारी सर्द ठिठुरती रातें,
रातें जो दबी हैं
स्वप्नों के बोझ तले,
जिनमे उलझते हुए,
वो भी देखा
जो अदृश्य है,
अगोचर है,

अनगिनित हाथ लम्बी
रश्मियों की बाहें,
जब घेरती हैं वजूद,
कालखंड के मध्य
झरता समय प्रवाह
स्टेचू बन करता है
फिर से
रात्रि के ओवर
कहने की प्रतीक्षा,

तब स्वप्न सो जाते हैं
एक मीठी लम्बी नींद,
मिटाने
अपनी दुर्गम यात्रा
की थकान.......




विश्वास ..
दिसम्बर १६, २०११


हमेँ जगाकर
झोँक देता है फिर
नई चुनौतियोँ
भरी एक यात्रा मेँ ..

जो कुछ पहेलियाँ
दे जाए समय
तुम्हारी मुट्ठी में
उन्हें फिर से
बोते जाओ,
कि
सुलझाने में वो
उलझनें ना
बन जाएँ कहीं ..

बहते जाओ
निर्झर
प्रपात बन -
बस
प्रश्न न करो,

रखो विश्वास
और
आशायेँ जीवित
कि
ये ही बना देंगे -
हमारी यात्रायेँ
सरल और सुगम ..

Monday 12 December 2011

रिश्तों की कोई उम्र नहीं होती






रिश्तों की कोई उम्र नहीं होती




संध्या का दीपक

जो जोड़ता है

मन को इश्वर से

बाती के रहने तक,

प्रार्थनाएं भी पूर्ण हो जाती हैं

मगर

रिश्तों की कोई उम्र नहीं होती ..



गर्मियों की शाम सरसराती

हवायों का सुखद चैन

सर्दी की दोपहर और

सूरज की वो गुनगुनी

धूप की गर्माहट में,

सिमट जाता है एहसास

अपना काम पूरा कर



आँगन के गमलों में

खिले गेंदे के फूल

अपना रंग और खुशबू

देते हैं बिखेर,

और बिखर जाते हैं

समय के साथ



सागर की उन्मत लहरें

जो घुमड़ती हैं ख्यालों सी

और लौट जाती हैं

अपने तेवर लिए,

माँ के आँचल का

समग्र वात्सल्य

देता है उर्जा ता-उम्र



बनती हैं रिश्तों की

संज्ञाएँ, जुडती हैं

आत्मा से

मगर सचमुच,



नहीं होती रिश्तों की कोई उम्र

इस दुनिया में ..






प्यार .. सद्भाव






बिखरा जहाँ पर प्यार है,
भाई बहनों का दुलार है,
कभी छदम सी डांट है
कभी मीठी सी फटकार है,

कभी रूठना-मनाना है,
कभी बोलकर बुलाना है,
हर सुबह के आगाज़ पर
कोई शुभ गीत सुनाना है,

शुभप्रभात हमारा स्नेह है,
यहाँ बरसता नेह है,
हम लोगों का संसार है,
आभासी नहीं
सदेह सजीव हैं..............


प्यार का... सद्भाव का
सहज से लगाव का
सुन्दर यह अंजुमन

अनजाने चेहरों की आत्मीयता का
शब्द शब्द सजीवता का
अद्भुत यह अंजुमन

सुन्दर मन में ही जन्म ले सकती हैं
'शुभ प्रभात' की परिकल्पना
तेरा घर... मेरा घर
हम सबका घर
'अंजू' का बसाया यह 'अंजुमन'

शब्द करते हैं चमत्कार
अगर आँखें देखने को हों तैयार
सुन्दर यह अंजुमन

खिलते रहें हरदम
बाँट लें हर गम
अपना यह अंजुमन

भारत के प्रति इमाम हुसैन का विश्वास Karbala part 1

Farhat Durrani via Anwer Jamal Khan on Facebook Dec.11, 2011
इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने दोस्तों और अपने परिवार समेत अपनी शहादत देकर मानवता को आदर्श के संकट से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया है , ज़रूरत है अपनी तंगनज़री से ऊपर उठकर इमाम हुसैन के नज़रिये और सीरत को समझने की।


भारत के प्रति इमाम हुसैन का विश्वास Karbala part 1


बुज़ुर्गाने दारूल उलूम देवबंद बसीरत व तहक़ीक़ की रौशनी में हज़रत सय्यदना हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नज़रिये को बरहक़ और यज़ीदियों के मौक़फ़ को नफ़्सानियत पर मब्नी समझते हैं ।
-मौलाना मुहम्मद सालिम क़ासमी , शहीदे कर्बला और यज़ीद नामक उर्दू किताब की भूमिका में , लेखक : मौलाना क़ारी तय्यब साहब रह. मोहतमिम दारूल उलूम देवबंद उ.प्र.

इसलिए अक़ाएद अहले सुन्नत व अलजमाअत के मुताबिक़ उनका अदब व अहतराम , उनसे मुहब्बत व अक़ीदत रखना , उनके बारे में बदगोई , बदज़नी बदकलामी और बदएतमादी से बचना फ़रीज़ा ए शरई है और उनके हक़ में बदगोई और बदएतमादी रखने वाला फ़ासिक़ व फ़ाजिर है ।
-(शहीदे कर्बला और यज़ीद ; पृष्ठ 148)

पूरी किताब को पेश कर देना तो फ़िलहाल मेरे लिए मुमकिन नहीं है और न ही कोई एक किताब हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की तालीमात, उनके किरदार या उनकी क़ुर्बानियों को बयान करने के लिए काफ़ी है लेकिन किताब में जो कहा गया है कि इमाम हुसैन का नज़रिया और मार्ग हक़ था वह हरेक फ़िरक़ापरस्ती, गुमराही और आतंकवाद के ख़ात्मे के लिए काफ़ी है ।

शहादते हुसैन सिर्फ़ किसी एक मत या नस्ल या किसी एक इलाक़े के लोगों के लिए वाक़ै नहीं हुई बल्कि यह शहादत सत्य, न्याय और पूरी दुनिया के मानवाधिकार की रक्षा के लिए वाक़ै हुई है। जो लोग दुनिया छोड़कर जंगलों में जा बसे या तो उन्हें पता नहीं था कि दुनिया वालों को क्या रास्ता दिखाएं या फिर उन्होंने ख़ुद को ज़ालिम हुक्मरानों के सामने बेबस पाया। आज उनमें से किसी का तरीक़ा भी ऐसा नहीं है कि उस पर चलकर आज का इंसान सामूहिक रूप से अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों को अदा करने के लायक़ बन सके लेकिन इमाम हुसैन का मार्ग ही वास्तव में एकमात्र ऐसा मार्ग है जिसका अनुसरण किसी भी देश का आदमी आज भी कर सकता है। इमाम हुसैन का मार्ग पलायन और निराशा का मार्ग नहीं है। उनका मार्ग आशा और संघर्ष का मार्ग है। उनका मार्ग अपनी और अपने परिवार की जाँबख़शी के लिए ज़मीर का सौदा करने वालों का मार्ग नहीं है और न ही ऐसे ख़ुदग़र्ज़ कभी उनके मार्ग को अपना मार्ग बनाते हैं ।
इंसान अपनी जान व माल और ताक़त का मालिक ख़ुद नहीं है बल्कि इनका मालिक उसे पैदा करने वाला पालनहार है। बंदा अपने हर अमल में उसके हुक्म का पाबंद है और उसके प्रति जवाबदेह है। अपने रब पर यही मुकम्मल ईमान इंसान को मौत के ख़ौफ़ और दुनिया के लालच से मुक्ति देता है। जब तक इस तरह का किरदार लोग अपने अंदर पैदा नहीं करते तब तक समाज में न तो शांति आएगी और न ही किसी को हक़ और इंसाफ़ ही मिलेगा।
वाक़या कर्बला यही बताता है ।

आज की समस्या ज्ञान की कमी की समस्या नहीं है बल्कि आज मानवता के सामने आदर्श का संकट है ।
वास्तव में आदर्श कौन है ?

अधिकतर लोग तो आज भी यह नहीं जानते और जो जानते हैं वे भी प्राय: उस आदर्श पर नहीं चलते।
इमाम हुसैन ने अपने दोस्तों और अपने परिवार समेत अपनी शहादत देकर मानवता को आदर्श के संकट से हमेशा के लिए मुक्त कर दिया है , ज़रूरत है अपनी तंगनज़री से ऊपर उठकर इमाम हुसैन के नज़रिये और सीरत को समझने की।
आज आदमी ज़ुल्म-ज़्यादती की शिकायतें करता है , कहता है कि उसे सताया जा रहा है , उसका हक़ मारा जा रहा है। कभी वह अपने नेताओं को अपनी बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराता है और कभी अफसरों को लेकिन अपनी बदहाली के लिए दरअस्ल वह खुद जिम्मेदार है क्योंकि वह खुद ज़ालिम है । न तो उसने अपने पैदा करने वाले का हक़ अदा किया और न ही उसूलों की खातिर कुर्बानियाँ देने वालों का ।

इमाम हुसैन से पहले भी हर ज़माने में उसूलों की ख़ातिर महापुरूषों ने कुर्बानियाँ दी हैं लेकिन लोगों ने अक्सर उन्हें भुला दिया और उनके मार्ग को भी और अगर याददाश्त में कुछ वाक़यात बचे भी रहे तो उनमें इतनी कल्पनाएं मिला दीं कि उनकी ऐताहासिकता को ही संदिग्ध बना दिया। लोग उनकी क़ुर्बानियों से सीख तो क्या लेते उल्टे उनके चरित्र पर ही उंगलियां उठाने लगे। ऐसे हालात में इमाम हुसैन ने लोगों के सामने अपनी ज़िंदगी में भी आदर्श पेश किया और अपनी मौत में भी। दुनिया का हर शख़्स उनकी ज़िंदगी को ही नहीं बल्कि उनकी मौत को भी ख़ूब अच्छी तरह परख कर देख सकता है कि वास्तव में वे आदर्श थे कि नहीं ?

और जब वह यह जान ले कि वास्तव में वे आदर्श थे तो उस पर उनका यह हक़ वाजिब हो जाता है कि उनका अनुसरण किया जाए। जो आदमी उनका अनुसरण नहीं करता वह उनका हक़ मारता है , उन पर ज़ुल्म करता है। जो ज़ुल्म करेगा , वह अपने ज़ुल्म की सज़ा ज़रूर पाएगा, यह एक अटल सच्चाई है । आज हर आदमी जो कष्ट भोग रहा है अपने ही ज़ुल्म के नतीजे में भोग रहा है । मानवता के आदर्श का अनुसरण न करने का अंजाम भुगत रहा है । ख़ुदा मुंसिफ़ है , जिसके साथ जो हो रहा है आज भी ऐन इंसाफ़ हो रहा है लेकिन उस रब के इंसाफ़ को हरेक आंख नहीं देख सकती । उसके इंसाफ़ को देखने के लिए भी हुसैनी नज़र और हुसैनी नज़रिया दरकार है ।
इमाम हुसैन पर यज़ीद ने ज़ुल्म किया। उसने इमाम हुसैन का अनुसरण न करके उन्हें शहीद कर दिया । बाद में यज़ीद खुद भी मर गया । यज़ीद तो मर गया लेकिन इमाम हुसैन पर जुल्म का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है । न तो यज़ीद उनका अनुसरण करने के लिए कल तैयार था और न ही दुनिया की अक्सरियत उनके अनुसरण के लिए आज तैयार है।

यज़ीद ने जो ज़ुल्म किया उसे हम न रोक पाए क्योंकि तब हमारा वुजूद नहीं था लेकिन आज हम उनका हक़ अदा करके उन पर होने वाले ज़ुल्म को रोक सकते हैं। यह हम पर हमारे पालनहार ने अनिवार्य ठहराया है।
महापुरूषों को देश और भाषा की बुनियाद पर अपना पराया ठहराना सरासर ज़ुल्म है, अज्ञान है, पाप है। भारत भूमि ज्ञान और पुण्य की भूमि है, यहां तो कम से कम महापुरूषों पर ज़ुल्म के हर प्रकार का उन्मूलन तुरंत ही कर देना चाहिए। केवल यही मार्ग है जिसमें सबका कल्याण है। इसी पर चलकर हम सब एक हो सकते हैं और भारत के गौरव की वापसी भी केवल इसी तरह संभव है।

ख़ुद इमाम हुसैन को भी आशा ही बल्कि पूरा विश्वास था कि भारत में उन पर ज़ुल्म न किया जाएगा । हमें उनके विश्वास पर खरा उतरना ही होगा।

Friday 9 December 2011

सत्य शिव और सुन्दर!





सत्य शिव और सुन्दर! by Anupama Pathak on Friday, 9 December 2011 at 13:31



एक कविता... कुछ एक बातों से प्रेरित जो चंद्रशेखर जी के मुखारविंद से निकले...! मन, मस्तिष्क और नाम को बुनते हुए कुछ यूँ बहे शब्द...


चंद्रशेखर...

यह तो शिव का ही एक नाम है न...

सत्य और सुन्दर!



आभासी तो

यह सारी दुनिया है...

कितने मोती है छिपाए हुए समंदर!



एक समंदर है

हर इंसान के अंतस्तल में

उबड़ खाबड़ भूमि है

तो नरमी भी है यहाँ वहाँ समतल में

बस किनारे से चलते हुए

भीतर तक जाना है

वहीँ जहाँ गहराई है

सत्य और शिव का ठिकाना है

हम स्वयं खुद से

दूर रहते हैं आजीवन

आत्मा से पहचान का

नहीं आता कोई मौसम

भीड़ में रहकर

भीड़ के हो जाते हैं

हम चले थे पाने खुद को

पर भंवर में खो जाते हैं

जितना चलते हैं धरती पर

सूक्ष्म क़दमों से उतना भीतर चलना है

आत्मा के द्वार पर दस्तक दे पायें

तब तक गिरना और संभलना है

यही हमारी आपकी सबकी

पहचान है

ईश्वर क्या है? हममें आपमें हम सब में

बसा हुआ भगवान है

जिस दिन शरीर में रहकर शरीर से परे

आत्मा स्वयं को मानेंगे हम

उस दिन मुस्कुराएंगे दिनमान

भाग जाएगा हृदय का तम



आभासी दुनिया में रहकर

हो जाए

यह एहसास प्रखर!



जीव ही शिव है

जीवन ही पूजा है

परिक्रमारत प्रतीत होती फिर हर डगर!



जिसकी जैसी दृष्टि होगी

वह वैसी दुनिया पायेगा

आभासी है यह जग

जो जैसा सोचेगा वह वैसा हो जाएगा

अपनी दुनिया... अपनी धरती पर

अपने अपने स्वर्ग और नर्क रचते हैं हम

हृदय कुञ्ज में कोलाहल है

और मन में बसते हैं कितने ही तम

माटी की काया में

जबतक है जगमग प्राण

मन मस्तिष्क में

है चलना यही विधान

तर्क बुद्धि मस्तिष्क की

और मन की चंचलता

सबसे श्रेष्ठ... सबसे परे

है हृदय की सरलता

बस यह प्रतिमान साथ हो

फिर सत्य सारे मूर्त हैं

जुड़ाव की प्रक्रिया की

पहली यह शर्त है

मन बुद्धि प्राण से बना यह शरीर

जिस दिन आत्मा को पहचानेगा

उस दिन वह

जीवन की महिमा को जानेगा

और हो जाएगा

सत्य , शिव और सुन्दर

खोज जिसे रहे हैं बाहर

विधाता ने रख छोड़े हैं वो सारे तत्व हमारे ही अन्दर!



स्वनामधन्य

शाश्वत की राह में

निरंतर अग्रसर!



चंद्रशेखर...

यह तो शिव का ही एक नाम है न...

सत्य और सुन्दर!

प्रेम अक्षुण्ण रहे! प्रस्तुतकर्ता अनुपमा पाठक at ३१ अगस्त २०११







प्रेम अक्षुण्ण रहे! अनुपमा पाठक
shared on facebook by Chandrasekhar 7 Dec.2011 Wednesday at 21:53


एक पावन
एहसास से
बंध कर
जी लेते हैं!
मिले
जो भी गम
सहर्ष
पी लेते हैं!
क्यूंकि-
प्रेम
देता है
वो शक्ति
जो-
पर्वत सी
पीर को..
रजकण
बता देती है!
जीवन की
दुर्गम राहों को..
सुगम
बना देती है!

बस यह प्रेम
अक्षुण्ण रहे
प्रार्थना में
कह लेते हैं!
भावनाओं के
गगन पर
बादलों संग
बह लेते हैं!
क्यूंकि-
प्रेम देता है
वो निश्छल ऊँचाई
जो-
विस्तार को
अपने आँचल का..
श्रृंगार
बता देती है!
जिस गुलशन में
ठहर जाये
सुख का संसार
बसा देती है!






You, Sunita Arun, Ashish Pandey and 2 others like this.

Ashish Pandey: वैसे भाई जी थोड़ी सी असहमति ,भाव अक्षुण्ण ही रहता है ,बदलते तो हम और आप हैं ...:)
Wednesday at 22:10 · Unlike · 1

Chandrasekhar Nair: भाई जी समय काल ..! अब अक्षुण्ण कौन ..
Wednesday at 23:59 · Like

Anupama Pathak: सारे सांसारिक बंधन और प्रेम स्वार्थ पर आधारित हैं... यह बात सुनने में कटु अवश्य है पर है सत्य और वो भी अकाट्य! प्रेम न बदलता हो पर हम तो बदलते हैं न और ये हमीं हैं जो प्रेम करते हैं तो जब हम अक्षुण्ण नहीं तो हमारा प्रेम कैसे हो अक्षुण्ण... सभी बातें सापेक्षिक हैं! अक्षुण्ण है तो मात्र प्रभु का प्रेम अपने भक्तों के प्रति... भक्त भी कहाँ कर पाते है 'उससे' उस जैसा अलौकिक प्रेम! ऐसे में यह कामना ही की जा सकती है कि 'प्रेम अक्षुण्ण रहे'!
Yesterday at 13:47 · Unlike · 2

Nirmal Paneri: बस यह प्रेम
अक्षुण्ण रहे
प्रार्थना में
कह लेते हैं!
भावनाओं के
गगन पर ....वाह बात ये है की ...इंसानी जीवन में ...भावनाओं का सम्मान और उसका ही सार्थक जीवन को उर्जा देने का जो अणु कहा दो ...बड़ी बात नहीं वही सबसे सहक्ति सहली हुआ करता है ....बाकि बड़ी बात में करना जनता है नहीं ....उसके जीती भी इन्सान भवना रखता हो तो शायद ही जीवन में ठोकरें खये ...पर उसकी फितरत की ...भावना को प्रधान न मान कर बाकि बैटन को सर्वोपरी रखा करता है ...और जीवन भर बस उन चीजों में भटकता रहता है जो उसको खुद को मालूम नहीं ...क्यू की भावना हे ही नहीं उस के लिए ...बाकि जीवन की शुरुवात और अंत वही बीच में भावनाओ का स्थान ...अअब कुछ उसको बोझ समझे तो ये इंसानी सोच ...वो परम पिता उसके पास सब कुछ ...बस भावना का भूखा है ....एक मुट्ठी में संसार लुटा दिया ...बड़ी बातें हम इन्सान के पास ..बिना भावना के ...जबरदस्त आलेख अणु जी का ...मेरे पास कुछ भी शब्द नहीं ..अज्ञानी इस रिदयंगम स्तुति के सामने पर मुझे सुबह से समय नहीं मिला में आ नहीं सका ..जबकि मेरी भावना सुबह से इस पर थी ...और इस संसार रूपी माया में जिसको जो पसंद वही वस्तु पाने की चेष्टा भी ...मुझे न पद का ज्ञान न शब्दों का ..पर भावना मेरे लिए सर्वोपरी ...और मुझे ये पक्तियां खुद को जीने की प्रेरणा दे गयी !!!!!!बहुत शुक्रिया भाई जी ...और दिल से बधाई अनु जी को !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!111
17 hours ago · Unlike · 1

Anupama Pathak: ‎Nirmal ji, कमेंट्स के रूप में आपके लिखे गद्य हमेशा सारपूर्ण होते हैं... हमें तो लगता है कि यहाँ वहां फेसबुक की कई दीवारों पर कितनी ही पोस्ट्स पर व्याप्त आपकी लिखी बातों को संगृहीत कर लेना चाहिए...!
आपका आशीर्वाद सदा कविताओं को प्राप्त होता रहता है इसके लिए आभार व्यक्त करना शब्दों से परे है...! One day I have planned to surprise you with all your invaluable comments compiled:) oh! I just revealed it...:) ab surprise kahaan rahega...
17 hours ago · Unlike · 2

Chandrasekhar Nair: इतनी बड़ी कायनात उसकी, उसमेँ ये छः फिट के आसपास का ढांचा .. फिर उसके भीतर पहले रखा पखुड़ियोँ सा कोमल सुजाग्रत ह्रदय .. फिर बाकि सब, और फिर आखिरी मेँ ये मस्तिष्क ..होड़ लगाता है शुरु से आखिर तक, झुठलाने उस वात्सल्य करुणा को बेमतलब समझ .. ये उसका काम है, करता रहे ..
17 hours ago · Like · 2

Chandrasekhar Nair: निर्मल भाई .. आपका भी सात सौ पचास-एक ग्राम का मैटर ग्रे नहीँ हुआ अभी तक .. ग्रीन है और प्रण है ग्रीने बनाय रक्खब ..
हाहाहा .. :))
16 hours ago · Like · 2

Nirmal Paneri: ‎@anu ji मैनें न आप ओ देखा न आप से कभी बात की ...बस जब २-ढाई साल पहले आप की रिदयंगम स्तुतियों से वास्ता पड़ा ...में इस बात से गर्वित हुआ की ...इस तरह के संस्कार !!!!मेरा नमन उन माता पिता को बस इसके आगे ...मेरे शब्द एक ढकोसला लग सकतें है आज की छद्म दुनिया को ..मुझे कुछ भी नहीं कहना कुछ ही लोग हुआ करतें है जो जीवन में प्रेरणा दे जातें है ..बाकि ..मेरे आगे सब कुछ बेकार ही ..मुझे पता है संस्कारों का पानी कितने पटल तोड़ कुओं निकल कर एक माता पिता लातें है ...हम पी न सके ...!!!खेर लम्बी बात पर...यहाँ इतना मान मिल जाये तो जीवन धन्य है !!!!!शुक्रिया भाई जी का !!!!!!!!!!!
16 hours ago · Unlike · 1

Chandrasekhar Nair: अरे ऊपर का पढ़िये तो भाइसा ..
16 hours ago · Like

Anupama Pathak: You live up to your name Nirmal ji...
16 hours ago · Unlike · 2

Chandrasekhar Nair: ‎& where do i, Anu.. :)
16 hours ago · Like

Anupama Pathak: grey matter, CNS aur heart ke baare mein yun padh kar accha laga!Well put Chandrasekhar ji:)
16 hours ago · Unlike · 1

Anupama Pathak: ‎Chandrasekhar bhaiya, You are epitome of values... aur kya bolun! Great to have known you:)
16 hours ago · Like · 1

Anupama Pathak: ‎Ashish ji, aapke shabdasheesh pa kar kavita dhany hui! Thanks for the divine favour!
16 hours ago · Like

Chandrasekhar Nair: Anu, since i do not have those dark colours inside, i prefer them as outfits, hence i wrote like that.. thanks.. anyway i'v bn told & coached about this virtual world.. not my cuppa .. let's see .. tc .. gn .. :)
16 hours ago · Like

Chandrasekhar Nair: epitome ढह जाने के लिए होते हैँ ..
16 hours ago · Like · 1

Anupama Pathak: ‎'& where do i, Anu.. :)' followed by other comments of yours has directed me towards a poem... likh paaye to padhayenge:)
tc .. good night!
16 hours ago · Unlike · 1

Chandrasekhar Nair: jio mere laal .. tc.. cu frsh .. thanks .. gn .. :))


Anupama Pathak:
अभी अभी इस पूरी पोस्ट को 'मन की बातें' पर देख कर आ रहे हैं...!!!
It was such a pleasant surprise:) Accept my deep sense of gratitude for the effort you took to preserve the moments of bliss that gave way to the poem...
कविता की पृष्ठभूमि तैयार कैसे हुई... इसका लेखा जोखा... आशीष जी की बात से बात निकली और मन की बातों ने कैसे कैसे तार जोड़ निकाले!
'प्रेम अक्षुण्ण रहे' को साझा किया आपने, एक बड़ी ही सुन्दर बात कही आशीष जी ने... फिर निर्मल जी के निर्मल वचन और आपकी मन मस्तिष्क को लेकर सुन्दर विवेचना...
सबने मिलकर 'सत्य शिव और सुन्दर' रचा... यह 'Ashish' ,'Chandrasekhar' , 'Nirmal' और 'Anupama' के साझे प्रयास का फल है!
Thanks everyone for the divine favour!!!
Saturday at 12:20 · Unlike · 1
16 hours ago · Like

Chandrasekhar Nair: छोटी बहन अनु के लिये अभी बाकि है हमारे (शेखर) अंतःमन की बात .. :)
Saturday at 12:24 · Like


सत्य शिव और सुन्दर! by Anupama Pathak on Friday, 9 December 2011 at 13:31



एक कविता... कुछ एक बातों से प्रेरित जो चंद्रशेखर जी के मुखारविंद से निकले...! मन, मस्तिष्क और नाम को बुनते हुए कुछ यूँ बहे शब्द...


चंद्रशेखर...

यह तो शिव का ही एक नाम है न...

सत्य और सुन्दर!



आभासी तो

यह सारी दुनिया है...

कितने मोती है छिपाए हुए समंदर!



एक समंदर है

हर इंसान के अंतस्तल में

उबड़ खाबड़ भूमि है

तो नरमी भी है यहाँ वहाँ समतल में

बस किनारे से चलते हुए

भीतर तक जाना है

वहीँ जहाँ गहराई है

सत्य और शिव का ठिकाना है

हम स्वयं खुद से

दूर रहते हैं आजीवन

आत्मा से पहचान का

नहीं आता कोई मौसम

भीड़ में रहकर

भीड़ के हो जाते हैं

हम चले थे पाने खुद को

पर भंवर में खो जाते हैं

जितना चलते हैं धरती पर

सूक्ष्म क़दमों से उतना भीतर चलना है

आत्मा के द्वार पर दस्तक दे पायें

तब तक गिरना और संभलना है

यही हमारी आपकी सबकी

पहचान है

ईश्वर क्या है? हममें आपमें हम सब में

बसा हुआ भगवान है

जिस दिन शरीर में रहकर शरीर से परे

आत्मा स्वयं को मानेंगे हम

उस दिन मुस्कुराएंगे दिनमान

भाग जाएगा हृदय का तम



आभासी दुनिया में रहकर

हो जाए

यह एहसास प्रखर!



जीव ही शिव है

जीवन ही पूजा है

परिक्रमारत प्रतीत होती फिर हर डगर!



जिसकी जैसी दृष्टि होगी

वह वैसी दुनिया पायेगा

आभासी है यह जग

जो जैसा सोचेगा वह वैसा हो जाएगा

अपनी दुनिया... अपनी धरती पर

अपने अपने स्वर्ग और नर्क रचते हैं हम

हृदय कुञ्ज में कोलाहल है

और मन में बसते हैं कितने ही तम

माटी की काया में

जबतक है जगमग प्राण

मन मस्तिष्क में

है चलना यही विधान

तर्क बुद्धि मस्तिष्क की

और मन की चंचलता

सबसे श्रेष्ठ... सबसे परे

है हृदय की सरलता

बस यह प्रतिमान साथ हो

फिर सत्य सारे मूर्त हैं

जुड़ाव की प्रक्रिया की

पहली यह शर्त है

मन बुद्धि प्राण से बना यह शरीर

जिस दिन आत्मा को पहचानेगा

उस दिन वह

जीवन की महिमा को जानेगा

और हो जाएगा

सत्य , शिव और सुन्दर

खोज जिसे रहे हैं बाहर

विधाता ने रख छोड़े हैं वो सारे तत्व हमारे ही अन्दर!



स्वनामधन्य

शाश्वत की राह में

निरंतर अग्रसर!



चंद्रशेखर...

यह तो शिव का ही एक नाम है न...

सत्य और सुन्दर!




Anupama Pathak: ‎'मन की बातें' पर मन की बातों को देखना सुखद है!!!
भाव सम्बद्ध होते हैं किसी एक बात से जो प्रेरणा बन कर लेखनी को दिशानिर्देश देती है... लेकिन एक बार कविता के धरातल पर आ गए... धारा बह निकली तो वह किसी एक से सम्बद्ध न हो कर हमारी , आपकी हम सबकी हो जाती है... इसे पढ़ कर भी ऐसा ही लगा हमें..! आपकी प्रेरणा न होती तो यह कविता भी न होती...
इसे यहाँ स्थान देने के लिए आभार!!!

s.chandrasekhar.india said... Anupama ji
"सत्य , शिव और सुन्दर
खोज जिसे रहे हैं बाहर
विधाता ने रख छोड़े हैं वो सारे तत्व हमारे ही अन्दर!"
इस तत्त्व को ढूंढना के लिए ही इस बहुमूल्य जीवन का उपहार इश्वर ने दिया है हम सब को .. कौन कितनी शिद्दत से ढूंढ कर पा ले, यह उसपर निर्भर है.. हम तो इस यात्रा का आनंद ले रहें हैं अबतक ..
उसे पा लेने की चाह से ज्यादे, आनंद उसे खोजने में मिलता है हमें ..

Monday 5 December 2011

'पथप्रदर्शक माँ - अनुपमा की कलम से' चित्र के भाव को उकेरने का हमारा साझा प्रयास ..






सीखते हैं जीवनपर्यंत हम

हर ठोकर के बाद

आती है... रह जाती है

मन में बस कर कोई याद



गुरु रूप में कभी कोई

तो कभी कोई

करता रहता है मार्गदर्शन

मिलते रहते हैं

हर मोड़ पर कितने ही

जीवनदर्शन



कभी जीवन स्वयं

ऊँगली पकड़ कर चलना

सीखलाए

तो कभी किसी का उपदेश

पथप्रदर्शक बन जाए



हो जाते हैं हम

गिर कर खड़े

परिमार्जित कर भोलेपन को

हो जाते कुछ और बड़े



बस ज़रा सी

आँखें नम करनी हैं

और श्रद्धानत होना है उसके समक्ष

जो अपनी धरणी है



उड़ना जिसने सिखलाया

पंछी को वह ममता याद रही

चाहे वो उड़कर जाए कहीं

उसके भीतर ममत्व आबाद रहे



सीखों को समझना

जिसने सिखलाया

अन्धकार में हमसे -

वो पहला दीप जलवाया



जो जीवन तो देती ही है

उसका ध्येय भी समझाती है

त्याग सभी सुखों को

वह स्वांस हमारी बन जाती है



इश्वर से भिन्न नहीं उसका अस्थान

हे माँ ! तुम्हें बारंबार प्रणाम ..




Picture by: Wisdom of the Sacred Feminine

Saturday 3 December 2011

यात्रा १




यात्रा १


यूं तो बड़े लोगों के
यात्रायों के संस्मरण पढ़े
थे हमने

कुछ मन किया के
आज कोशिश कर जी लें
फिर अपने जीवन की
पहली यात्रा के वो क्षण
शहर लखनऊ से त्रिवेंद्रम

रिक्शे पे
लादे होल्डाल और
दो अटैची
आगे थे पिता,
पीछे वाले पर
एक अदद सुराही,
डोलची में मिठाई
के डिब्बों में सफ़र
का खाना
और कस के पकडे
माँ का पल्लू
यकीन -
गिरने नहीं देगा
रिक्शे से नीचे
एक छह साल का
यात्री

स्टेशन की भीड़
कोयले का इंजन
उसकी लम्बी सीटी
धडधड करते लोहे के पहिये
चलने से पहले ही
पहुंचा देंगे जैसे,
वो रफ़्तार
अब भी करती
है रोमांचित
स्टेशनों पर चाय चाय
की आवाजें के बीच
पानी की प्यास
बिस्कुट संतरे
और केलों के साथ
कानपुर आया
खिड़की की जिद
झाँसी पर काला चेहरा
साफ़ करती माँ
के हाथ
कि खुली नींद
रात रिटायरिंग रूम
की रौशनी में ..




क्रमश:

Thursday 1 December 2011

पकी उम्र का बचपन




पकी उम्र का बचपन



एक पकी उम्र का आदमी
गुज़ारता है
सच में
एक छोटे बच्चे सी ज़िन्दगी

पा जाता है जब कुछ पहाड़ी फूल
ख़ुशी उसकी देखते है बनती
मुस्कुरा दे शहरों की रोशनियाँ देख
मज़ा दे जाती उसको बच्चों की शोखियाँ

मगर घबरा जाता है अकेले खड़े, पुल पर
पानी में देख अपनी ही छवि
उसके पस्त हाथों में एक किताब
याद दिला जाती अपने स्कूल का बरामदा

दीवार पर लगी घड़ी का अलार्म
याद दिलाये उसको .. अभी खानी है दवा !
रातों में उठ-उठ कर जागता भी है अक्सर
खिडकियों पे जाने क्या खोजता है

सुबह की किरणें क्या पता,
लौटा कर ला दें वो उजाला
फिर से भर दें जो रोशनियाँ
उसके आस-पास

इतवार चर्च की सीड़ियाँ उतरते
एक नन्हा हाथ थाम लेता
कलाई उसकी ..
लौट आता उसका
बचपन मुस्कुराता !