Friday 3 February 2012

थोड़ी फुर्सत है आज by Vandna Tripathi


आइये पढ़ें वंदना त्रिपाठी बहन की एक सुन्दर रचना भावाभिव्यक्ति परिपूर्ण ..




थोड़ी फुर्सत है आज,
चलो कर लूँ खुद से मुलाक़ात
दिन बीते
किये खुद से बात,
झाँकूँ अपने भीतर
और,
देखूं कितनी महक
बची है बचपन की,
कितनी
मादकता शेष है
वासंती यौवन की,
वाणी का शहद
बचा है क्या..?

बचपन की निश्छलता ..
चंचलता पकी तो नही,
विचारोँ की अन्तस्सलिता
सूखी तो नहीँ,
चुकी तो नहीँ
सम्बन्धो की ऊष्मा?
दो घड़ी रुक कर झांका
तो भीतर थी अनुभूतियां,
निश्छलता .. चंचलता ..
वासंती सुधियाँ भी,
धरी थी अनछुई सी,
थी सम्बन्धोँ की आंच भी
सब कुछ तो था,
जो सौँपा उस विराट ने ..!

बस जम गई थी
काई स्वार्थ की,
अहंकार.. दुनियादारी
की धूल ..
तो क्योँ न साफ करुँ
वो काई और
झाड़ दूँ धूल
नया सा कर लूँ
अपना अंतरतम ..

बतिया लूँ कुछ फूलो से-
चहचहाती चिड़ियों सी,
झूमते पेड़ों से
पा लूँ एक उछाह..!
फलो से वाणी की मिठास ..
जाऊँ नदिया निर्झर तीर
भर लूँ जीवन में
लय स्वर व ताल
तितली के पंखों से
लूँ रंग, बच्चो से उनकी
निश्छलता ..

सीख लूँ जड़ो से जुड़ना,
अपने दरवाजे के बूढ़े बरगद से ..
फिर सुन अपनी सांसो
का नव-संगीत
महका जाऊँ जग को अपनी
अंतरात्मा की मदिर सुवास से ..

हाँ, थोड़ी फुरसत है, आज ..

- वंदना