शब्दोँ की अठखेलियां..
शब्दोँ की अठखेलियां अक्सर करती हैँ मुझसे
बेबाक बतकही.
कभी मेरी चैतन्यता पर करती प्रहार
छीन कर मुझसे शब्द
चिढ़ाती हैँ मुझे
मेरी हर सोच की अस्मिता पर पूँछती सवाल..
हर चयन पर हुआ नादानियोँ का हिसाब.
खुली आंखोँ से सपने देखता रहता मैँ
पर शब्दोँ का खेल
सजग करता
मुझे.
रास्ते के हर मोड़ पर...
दे जाता एक
नया शब्द..
एक नई परिभाषा !