गंगा जमुनी तहजीब / संस्कृति क्या है, क्या है ये आखिर?
सुबह के चाय की प्याली में मिली हुई एक चम्मच शक्कर
एक कटोरी दाल में मिला हुआ एक चुटकी नमक ?
पकौड़ी में भूरा चमकता एक प्याज का टुकड़ा
जलेबी / इमरती से टपकती शीरे की एक बूँद !
कनपटी पर चाँदी सा चमकता एक तार
गंगा/ जमुना के पानी से किये गये
वज़ू के बाद, हाथों से टपकती कुछ बूँदें;
एक लोटे से सूरज को दिया गया अर्घ्य है ये !
पीली सरसों के खिले रंगीन फूलों सा;
अमराई से होके आती गर्म लू की
हवाओं में छुपी ठंडी ख़ुशबु !
अपने खुद के नफे की खातिर
ना बाँट मुझे दरिया के दो किनारों की तरह
मत समझा गंगा-जमुनी तहजीब का फलसफा ..
ये सब इस मिट्टी के तन में है रचा बसा
बहता रमता है मेरी रग में मौज के साथ !
या तो तू भी इसमें रम जा! या-
जा कहीं कोई और काम ढूँढ
चल यहाँ से अपना ब्यौपार उठा !!
## शकील बदायुनी साहब कह गए हैं:
यहाँ के दोस्त बावफ़ा, मोहब्बतो से आशना
किसीके हो गए अगर रहे उसीके उम्र भर
निभायी अपनी आन भी, बढ़ायी दिल की शान भी
है ऐसा मेहरबान भी कहो तो दे दे जान भी
जो दोस्ती का हो यकीं
ये लखनऊ की सर ज़मी, ये लखनऊ की सर ज़मी ..
अफ़साना बन न जाए कहीं बात राज़ की.। बढ़िया शाब्दिक चित्रण। . इसमें में एक ही बात कहना चाह रहा हूँ कि जो लोग सर पर नारियल फोड़ना चाहते है फोड़ने दीजिये। . नारयल अपनी तहजीब बदल नहीं सकता ये प्रकृति के नियमो में बंधा है पर इंसान उस नियम को कितना अपनाता है देखने वाली बात ये है। । दिल में क्या भावना है ????और और हे तो उसकी आंधी भी उठती ही है और उस आंधी में सबकुछ तार-तार हो जाता है या इसमें बहने कि जरुरत भी करता है।?? !!!
ReplyDeleteजी सही कहा आपने .. अब नारियल सीधे इनके ही सर पर फोड़ने का टाइम आ गया है ! शुक्रिया भाई सा ..
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ReplyDeleteये सब इस मिट्टी के तन में है रचा बसा
बहता रमता है मेरी रग में मौज के साथ !
या तो तू भी इसमें रम जा! या-
जा कहीं कोई और काम ढूँढ
चल यहाँ से अपना ब्यौपार उठा !!
बहुत सही बात कही भैया, माने सब बातों का मूल ....संस्कृति का झण्डा उठाकर उसे अपने ढंग से परिभाषित करने वाले कम नहीं पर ऐसी बातें भी लिखी जाएँ तो गम नहीं.....बहुत खूब.....
जी अंजू बहन, संस्कृति का झंडा तो हम सब का है, कोई एक 'हाथ' इसे उठाकर अपने तरीके से कैसे पेश कर सकता है? मेरी आपत्ति इसी पर है ! बहुत शुक्रिया ..
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