Tuesday 9 April 2013

'ऊचाइयां' - श्री नवीन मिश्र जी







मै बहुत ऊँचा
हद से ऊँचा हो गया हूँ
इतनी ऊँचाई से
नज़र आता है
इंसान भुनगा
और इन भुनगो को देख
मै खुश होता रहता हूँ
मेरे एक कदम
रख देने से
भुनगे पिस जाते है
मै कदम कदम
इनको पिसते देखता हूँ
ये चिल्लाते नहीँ
इनकी रगोँ मे खून नहीँ
ये सारे के सारे
मिल कर भी
आवाज नहीँ कर सकते मै अगला कदम
बढ़ाता इनको दबाता
आगे बढ़ता हूँ
कई लाख करोड़
ऊँचाइयोँ तक...


नवीन मिश्र
(3 अप्रैल २०१२)

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