Tuesday 9 April 2013

मेरे अपने.... - श्री नवीन मिश्र जी







मेरे अपने....


अपने आप से बाहर
निकल कर हूँ देखता..

है कुछ अजब अलग,
पर अपना है.

इन अपनो मेँ हैँ
दोस्त, दुश्मन, गैर भी

मेरी अपनी दुनिया के
जरूरी हिस्से..

पल भर भी दूर अगर
होते, होती है बेचैनी..

होती है...उलझन..

अगर दुश्मन नहीँ करता
नफरत.

दोस्त नहीँ जुतियाता बात बात मेँ..

गैर नहीँ उठाते सवाल
मेरी छोटी छोटी खुशियोँ पर...


नहीँ! इन अपनो के
बगैर पसरे गा सन्नाटा
जीवन मेँ..

बदल दूंगा अभिषाप
आशीष मेँ..

मै इनके साथ जिऊँ गा...

- नवीन मिश्र

(१७ जून २०१२ )

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